Monday, June 29, 2009

Urdu Poet Ibne Insha's Poetry in Hindi & Urdu

जब उमर की नक़दी खतम हवी

अ ब उमर की नक़दी खतम हवी
अ ब हम को अधार की हाजत हे
है कोई जो साहो कार बने
है कोई जो दयोन हार बने
कुछ साल महीने दिन लोगो
पर सोद बयाज के बन लोगो
हांा पनी जां के ख़ज़ाने से
हां उमर के तोशह ख़ाने से
कया कोई भी साहो कार नहीं
कया कोई भी दयोन हार नहीं
जब नामा धर का आया कयों
सब ने सर को झकएा हे
कुछ काम हमें नपटाने हीं
जनहीं जानने वाली जाने हीं
कुछ पयार वलार के धनदे हीं
कुछ जग के दोसरे फनदे हीं
हम मानगते नहीं हज़ार बरस
दस पाँच बरस दो चार बरस
हां सोद बयाज भी दे लीं गे
हं और ख़राज भी दे लीं गे
आसान बने दशवार बने
पर कोई तो दयोन हार बने
तुम कौन हो तमहारा नाम कया हे
कुछ हम से तुम को काम कया हे
कयों इस मजमा में आी हो
कुछ मानगती हो ؟ कुछ लाती हो
यह कारोबार की बातीं हीं
यह नक़द अधार की बातीं हीं
हम बीठे हैं कशकोल लये
सब उमर की नक़दी खतम कये
गर शार के रशते आी हो
तब समझो जिल्द जदाई हो
अब गीत गयासनगीत गया
हां शार का मोसम बीत गया अब पत झड़ आी पात गरीं
कुछ सुबह गरीं कुछ रा त गरीं
यहा पने यार पराने हीं
खाक उमर से हम को जाने हीं
उन सब के पास है माल बहत
हां उमर के माह व साल बहत
उन सब को हम ने बलएा हे
और झोली को फीलएा हे
तुम जा उन से बात करीं
हम तुम से ना मलाक़ात करीं
कया पाँच बरस ؟
कया अमरा पनी के पाँच बरस ؟
तुम जा न की थीली लाई हो ؟
कया पागल हो ؟ सौ दाई हो ؟
जब उमर का आख़र आता हे
हर दिन सदयां बन जाता हे
जीने की होस ही ज़ाली हे
है कौन जो इस से ख़ाली हे
कया मौत से पहले मरना हे
तुम को तो बहत कुछ करना हे
फर तुम हो हमारी कौन भला
हां तुम से हमारा रशतह हे
कयासोद बयाज का लालच है ؟
किसी और ख़राज का लालच है ؟
तुम सोहनी हो ، मन मोहनी हो ؛
तुम जा कर पोरी उमर जयो
यह पाँच बरस यह चार बरस
छन जाईं तो लगीं हज़ार बरस
सब दोस्त गे सब यार गे
थे जतने साहो कार ، गे
बस एक यह नारी बीठी हे
यह कौन है ؟ कया है ؟ कीसी है ؟
हां उमर हमें दरकार भी है ؟
हां जीने से हमें पयार भी हे
जब मानगीं जयोन की घड़यां
गसताख़ आँखों कत जा लड़यां
हम क़र्ज़ तमहीं लोटा दीं गे
कुछ और भी घड़यां ला दीं गे
जो साात व माह व साल नहीं
वह घड़यां जिन को ज़वाल नहीं
लो अपने जी में अतार लया
लो हम ने तुम को अधार लया

ईंशा जी की कया बात बने गी ईंशा

ईंशा जी कया बात बने गी हम लोगों से दूर हवे
हम किस दिल का रोग बने ، किस सीने का नासोर हवे
बसती बसती आग लगी थी ، जलने पर मजबोर हवे
रनदों में कुछ बात चली थी शीशे चकनाचोर हवे
लीकन तुम कयों बीठे बीठे आह भरी रनजोर हवे
अब तो एक ज़मानह गज़रा तुम से कोई क़सूर हवे
अे लोगो कयों भोली बातीं याद करो ، कया याद दला
क़ाफ़ले वाली दूर गे ، बझने दवागर बझता है अला
एक मोज से रुक सकता है तोफ़ानी दरया का बहा
समे समे का एक रा ग है समे समे काा पना भा
आस की उजड़ी फलवारी में यादों के ग़नचे न खला
पिछले पहर के अनधयारे में काफ़ोरी शनाईं न जला
ईंशा जी वही सुबह की लाली । ईंशा जी वही शब कासमां
तुम ही ख़याल की जिगर मगर में भटक रहे हो जहां तहां
वही चमन वही ग़ुल बोटे हैं वही बहारीं वही ख़ज़ां
एक क़दम की बात है यों तो रद पहले ख़वाबों का जहां
लीकन दोरा फ़क़ पर दीखो लहराता घनघोर धवां
बादल बादल अमड रहा है सहज सहज पीचां पीचां
मनज़ल दूर दखे तो राही रह में बीठ रहे ससताे
हम भी तीस बरस के मानदे योनही रोप नगर हो आे
रोप नगर की राज कमारी सपनों में आे बहलाे
क़दम क़दम पर मदमाती मसकान भरे पर हाथ न आे
चनदरमा महराज की जयोती तारे हैं आपस में छपाे
हम भी घोम रहे हैं ले कर कासह अनग भभोत रमाे
जनगल जनगल घोम रहे हैं रमते जोगी सीस नवाे
तुम पर यों के राज दलारे तम ओनचे तारों के कवी
हम लोगों के पास यही अजड़ा अनबर ، अजड़ी धरती
तो तुम अड़न खटोले ले कर पहनचो तारों की नगरी
हम लोगों की रोह कमर तक धरती की दलदल में फनसी
तुम फोलों की सीजीं ढोनडो और नदयां सनगीत भरी
हम पत झड़ की अजड़ी बीलीं ، ज़रद ज़रद अलझी अलझी
हम वह लूग हैं गनते थे तो कुल तक जिन को पयारों मीं
हाल हमारासनते थे तो लोटते थे अनगारों मीं
आज भी कतने नाग छपे हैं दुश्मन के बमबारों मीं
आते हैं नीपाम अगलते वहशी सबज़ह ज़ारों मीं
आह सी भर के रह जाते हो बीठ के दनयादारों मीं
हाल हमारा छपता है जब ख़बरों में अख़बारों मीं
ओरों की तो बातीं छोड़ो ، और तो जाने कया कया थे
रसतम से कुछ और दलओर भीम से बड़ह कर जोधा थे
लीकन हम भी तनद भपरती मोजों का खाक धारा थे
अनयाे के सोखे जनगल को झलसाती जवाला थे
ना हम अतने चप चप थे तब ना हम अतने तनहा थे
अपनी ज़ात में राजा थे हम अपनी ज़ात में सीनह थे
तोफ़ानों का रीला थे हम ، बलवानों की सीना थे



फर तमहारा खत आया
शाम हसरतों की शाम
रात थी जदाई की
सुबह सुबह हर कारह
डाक से हवाई की
नाम वफ़ा लएा
फर तमहारा खत आया

फर कभी न आनगी
मोज सबा हो तम
सब को भूल जानगी
सख्त बे वफ़ा हो तम
दशमनों ने फ़रमएा
दोसतों ने समझएा
फर तमहारा खत आया

हम तो जान बीठे थे
हम तो मान बीठे थे
तीरी तलात ज़ीबा
तीरा दीद का वादह
तीरी ज़लफ़ की ख़ोशबो
दशत दूर के आहो
सब फ़रीब सब मएा
फर तमहारा खत आया

सातवीं समन्दर के
साहलों से कयों तुम ने
फर मझे सदा दी हे
दावत वफ़ा दी हे
तीरे अशक़ में जानी
और हम ने कया पएा
दर्द की दवा पाई
दरद लादवा पएा
कयों तमहारा खत आया


कयों नाम हम इस के बतलाईं

तुम इस लड़की को दीखते हो
तुम इस लड़की को जानते हो
वह अजली गोरी ؟ नहीं नहीं
वह मसत चकोरी नहीं नहीं
वह जस का करता नीला हे
वह जस का आनचल पीला है ؟
वह जस की आनख पह चशमह हे
वह जस के माथे टीका हे
उन सब से अलग उन सब से परे
वह घास पह नीचे बीलों के
कया गोल मटोल सा चहरह हे
जो हर दम हनसता रहता हे
कुछ चतान हैं अलबीले से
कुछ इस के नीन नशीले से
इस वक़्त मगर सोचों में मगन
वह सानोली सूरत की नागन
कया बे ख़बरानह बीठी हे
यह गीत असी का डर पन हे
यह गीत हमारा जयोन हे
हम इस नागन के घाल थे
हम इस के मसाल थे
जब शार हमारी सनती थी
ख़ामोश दोपटा चनती थी
जब वहशत असे ससताती थी
कया हरनी सी बन जाती थी
यह जतने बसती वाली थे
इस चनचल के मतवाले थे
इस घर में कतने सालों की
थी बीठक चाहने वालों की
गो पयार की गनगा बहती थी
वह नार ही हम से कहती थी
यह लूग तो महज सहारे हीं
ईंशा जी हम तो तमहारे हीं
अब और किसी की चाहत का
करती है बहाना ।।। बीठी है
हम ने भी कहा दिल ने भी कहा
दीखो यह ज़मानह ठीक नहीं
यों पयार बड़ाना ठीक नहीं
ना दिल माना ، ना हम माने
अनजाम तो सब दनया वाली जाने
जो हम से हमारी वहशत का
सनती है फ़सानह बीठी हे
हम जस के ले परदीस फरीं
जोगी का बदल कर भीस फरीं
चाहत के नराले गीत लखीं
जी मोहने वाली गीत लखीं
इस शहर के एक घरोनदे मीं
इस बसती के खाक कोने मीं
कया बे ख़बरानह बीठी हे
इस दर्द को अब चप चाप सहो
ईंशा जी लहो तो इस से कहो
जो चतोन की शकलों में लये
आँखों में लिये होनटों में लये
ख़ोशबो का ज़मानह बीठी हे
लूग आप ही आप समझ जाईं
कयों नाम हम इस का बतलाईं
हम जस के लिये परदीस फरे
चाहत के नराले गीत लखे
जी मोहने वाली गीत लखे
जो सब के लिये दामन में भरे
ख़ोशयों का ख़ज़ानह बीठी हे
जो ख़ार भी है और ख़ोशबो भी
जो दर्द भी है और दार व भी
लूग आप ही आप समझ जाईं
कयों नाम हम इस का बतलाईं
वह कुल भी मलने आी थी
वह आज भी मलने आी हे
जो अपनी नहीं पराई हे

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