Tuesday, July 7, 2009

Poetry of Urdu Poet Ibne Insha in Hindi

जब उमर की नक़दी खतम हवी

अ ब उमर की नक़दी खतम हवी
अ ब हम को अधार की हाजत हे
है कोई जो साहो कार बने
है कोई जो दयोन हार बने
कुछ साल महीने दिन लोगो
पर सोद बयाज के बन लोगो
हांा पनी जां के ख़ज़ाने से
हां उमर के तोशह ख़ाने से
कया कोई भी साहो कार नहीं
कया कोई भी दयोन हार नहीं
जब नामा धर का आया कयों
सब ने सर को झकएा हे
कुछ काम हमें नपटाने हीं
जनहीं जानने वाली जाने हीं
कुछ पयार वलार के धनदे हीं
कुछ जग के दोसरे फनदे हीं
हम मानगते नहीं हज़ार बरस
दस पाँच बरस दो चार बरस
हां सोद बयाज भी दे लीं गे
हं और ख़राज भी दे लीं गे
आसान बने दशवार बने
पर कोई तो दयोन हार बने
तुम कौन हो तमहारा नाम कया हे
कुछ हम से तुम को काम कया हे
कयों इस मजमा में आी हो
कुछ मानगती हो ؟ कुछ लाती हो
यह कारोबार की बातीं हीं
यह नक़द अधार की बातीं हीं
हम बीठे हैं कशकोल लये
सब उमर की नक़दी खतम कये
गर शार के रशते आी हो
तब समझो जिल्द जदाई हो
अब गीत गयासनगीत गया
हां शार का मोसम बीत गया अब पत झड़ आी पात गरीं
कुछ सुबह गरीं कुछ रा त गरीं
यहा पने यार पराने हीं
खाक उमर से हम को जाने हीं
उन सब के पास है माल बहत
हां उमर के माह व साल बहत
उन सब को हम ने बलएा हे
और झोली को फीलएा हे
तुम जा उन से बात करीं
हम तुम से ना मलाक़ात करीं
कया पाँच बरस ؟
कया अमरा पनी के पाँच बरस ؟
तुम जा न की थीली लाई हो ؟
कया पागल हो ؟ सौ दाई हो ؟
जब उमर का आख़र आता हे
हर दिन सदयां बन जाता हे
जीने की होस ही ज़ाली हे
है कौन जो इस से ख़ाली हे
कया मौत से पहले मरना हे
तुम को तो बहत कुछ करना हे
फर तुम हो हमारी कौन भला
हां तुम से हमारा रशतह हे
कयासोद बयाज का लालच है ؟
किसी और ख़राज का लालच है ؟
तुम सोहनी हो ، मन मोहनी हो ؛
तुम जा कर पोरी उमर जयो
यह पाँच बरस यह चार बरस
छन जाईं तो लगीं हज़ार बरस
सब दोस्त गे सब यार गे
थे जतने साहो कार ، गे
बस एक यह नारी बीठी हे
यह कौन है ؟ कया है ؟ कीसी है ؟
हां उमर हमें दरकार भी है ؟
हां जीने से हमें पयार भी हे
जब मानगीं जयोन की घड़यां
गसताख़ आँखों कत जा लड़यां
हम क़र्ज़ तमहीं लोटा दीं गे
कुछ और भी घड़यां ला दीं गे
जो साात व माह व साल नहीं
वह घड़यां जिन को ज़वाल नहीं
लो अपने जी में अतार लया
लो हम ने तुम को अधार लया

ईंशा जी की कया बात बने गी ईंशा

ईंशा जी कया बात बने गी हम लोगों से दूर हवे
हम किस दिल का रोग बने ، किस सीने का नासोर हवे
बसती बसती आग लगी थी ، जलने पर मजबोर हवे
रनदों में कुछ बात चली थी शीशे चकनाचोर हवे
लीकन तुम कयों बीठे बीठे आह भरी रनजोर हवे
अब तो एक ज़मानह गज़रा तुम से कोई क़सूर हवे
अे लोगो कयों भोली बातीं याद करो ، कया याद दला
क़ाफ़ले वाली दूर गे ، बझने दवागर बझता है अला
एक मोज से रुक सकता है तोफ़ानी दरया का बहा
समे समे का एक रा ग है समे समे काा पना भा
आस की उजड़ी फलवारी में यादों के ग़नचे न खला
पिछले पहर के अनधयारे में काफ़ोरी शनाईं न जला
ईंशा जी वही सुबह की लाली । ईंशा जी वही शब कासमां
तुम ही ख़याल की जिगर मगर में भटक रहे हो जहां तहां
वही चमन वही ग़ुल बोटे हैं वही बहारीं वही ख़ज़ां
एक क़दम की बात है यों तो रद पहले ख़वाबों का जहां
लीकन दोरा फ़क़ पर दीखो लहराता घनघोर धवां
बादल बादल अमड रहा है सहज सहज पीचां पीचां
मनज़ल दूर दखे तो राही रह में बीठ रहे ससताे
हम भी तीस बरस के मानदे योनही रोप नगर हो आे
रोप नगर की राज कमारी सपनों में आे बहलाे
क़दम क़दम पर मदमाती मसकान भरे पर हाथ न आे
चनदरमा महराज की जयोती तारे हैं आपस में छपाे
हम भी घोम रहे हैं ले कर कासह अनग भभोत रमाे
जनगल जनगल घोम रहे हैं रमते जोगी सीस नवाे
तुम पर यों के राज दलारे तम ओनचे तारों के कवी
हम लोगों के पास यही अजड़ा अनबर ، अजड़ी धरती
तो तुम अड़न खटोले ले कर पहनचो तारों की नगरी
हम लोगों की रोह कमर तक धरती की दलदल में फनसी
तुम फोलों की सीजीं ढोनडो और नदयां सनगीत भरी
हम पत झड़ की अजड़ी बीलीं ، ज़रद ज़रद अलझी अलझी
हम वह लूग हैं गनते थे तो कुल तक जिन को पयारों मीं
हाल हमारासनते थे तो लोटते थे अनगारों मीं
आज भी कतने नाग छपे हैं दुश्मन के बमबारों मीं
आते हैं नीपाम अगलते वहशी सबज़ह ज़ारों मीं
आह सी भर के रह जाते हो बीठ के दनयादारों मीं
हाल हमारा छपता है जब ख़बरों में अख़बारों मीं
ओरों की तो बातीं छोड़ो ، और तो जाने कया कया थे
रसतम से कुछ और दलओर भीम से बड़ह कर जोधा थे
लीकन हम भी तनद भपरती मोजों का खाक धारा थे
अनयाे के सोखे जनगल को झलसाती जवाला थे
ना हम अतने चप चप थे तब ना हम अतने तनहा थे
अपनी ज़ात में राजा थे हम अपनी ज़ात में सीनह थे
तोफ़ानों का रीला थे हम ، बलवानों की सीना थे



फर तमहारा खत


शाम हसरतों की शाम
रात थी जदाई की
सुबह सुबह हर कारह
डाक से हवाई की
नाम वफ़ा लएा
फर तमहारा खत आया

फर कभी न आनगी
मोज सबा हो तम
सब को भूल जानगी
सख्त बे वफ़ा हो तम
दशमनों ने फ़रमएा
दोसतों ने समझएा
फर तमहारा खत आया

हम तो जान बीठे थे
हम तो मान बीठे थे
तीरी तलात ज़ीबा
तीरा दीद का वादह
तीरी ज़लफ़ की ख़ोशबो
दशत दूर के आहो
सब फ़रीब सब मएा
फर तमहारा खत आया

सातवीं समन्दर के
साहलों से कयों तुम ने
फर मझे सदा दी हे
दावत वफ़ा दी हे
तीरे अशक़ में जानी
और हम ने कया पएा
दर्द की दवा पाई
दरद लादवा पएा
कयों तमहारा खत आया


कयों नाम हम इस के बतलाईं

तुम इस लड़की को दीखते हो
तुम इस लड़की को जानते हो
वह अजली गोरी ؟ नहीं नहीं
वह मसत चकोरी नहीं नहीं
वह जस का करता नीला हे
वह जस का आनचल पीला है ؟
वह जस की आनख पह चशमह हे
वह जस के माथे टीका हे
उन सब से अलग उन सब से परे
वह घास पह नीचे बीलों के
कया गोल मटोल सा चहरह हे
जो हर दम हनसता रहता हे
कुछ चतान हैं अलबीले से
कुछ इस के नीन नशीले से
इस वक़्त मगर सोचों में मगन
वह सानोली सूरत की नागन
कया बे ख़बरानह बीठी हे
यह गीत असी का डर पन हे
यह गीत हमारा जयोन हे
हम इस नागन के घाल थे
हम इस के मसाल थे
जब शार हमारी सनती थी
ख़ामोश दोपटा चनती थी
जब वहशत असे ससताती थी
कया हरनी सी बन जाती थी
यह जतने बसती वाली थे
इस चनचल के मतवाले थे
इस घर में कतने सालों की
थी बीठक चाहने वालों की
गो पयार की गनगा बहती थी
वह नार ही हम से कहती थी
यह लूग तो महज सहारे हीं
ईंशा जी हम तो तमहारे हीं
अब और किसी की चाहत का
करती है बहाना ।।। बीठी है
हम ने भी कहा दिल ने भी कहा
दीखो यह ज़मानह ठीक नहीं
यों पयार बड़ाना ठीक नहीं
ना दिल माना ، ना हम माने
अनजाम तो सब दनया वाली जाने
जो हम से हमारी वहशत का
सनती है फ़सानह बीठी हे
हम जस के ले परदीस फरीं
जोगी का बदल कर भीस फरीं
चाहत के नराले गीत लखीं
जी मोहने वाली गीत लखीं
इस शहर के एक घरोनदे मीं
इस बसती के खाक कोने मीं
कया बे ख़बरानह बीठी हे
इस दर्द को अब चप चाप सहो
ईंशा जी लहो तो इस से कहो
जो चतोन की शकलों में लये
आँखों में लिये होनटों में लये
ख़ोशबो का ज़मानह बीठी हे
लूग आप ही आप समझ जाईं
कयों नाम हम इस का बतलाईं
हम जस के लिये परदीस फरे
चाहत के नराले गीत लखे
जी मोहने वाली गीत लखे
जो सब के लिये दामन में भरे
ख़ोशयों का ख़ज़ानह बीठी हे
जो ख़ार भी है और ख़ोशबो भी
जो दर्द भी है और दार व भी
लूग आप ही आप समझ जाईं
कयों नाम हम इस का बतलाईं
वह कुल भी मलने आी थी
वह आज भी मलने आी हे
जो अपनी नहीं पराई हे






दूर तमहारा दीस है मझ से



दूर तमहारा दीस है मझ से और तमहारी बोली हे
फर भी तमहारे बाघ हैं लीकन मन की खड़की खोली हे
आ कि पल भर मल के बीठीं बात सनीं और बात कहीं
मन की बीता तन का दखड़ा ، दनया के हालात कहीं
इस धरती पर इस धरती के बीटों का कया हाल हवा
रसते बसते हनसते जग में जीना कयों जनजाल हवा
कयों धरती पह हम लोगों के खून की नसदन होली हे
सच पोछो तो यह कहने को आज यह खड़की खोली हे
बीला दयवी आज हज़ारों घा तमहारे तन मन हीं
जानता हों में जान तमहारी बनधन में कड़े बनधन मीं
रोग तमहारा जाने कतने सीनों में बस घोल गया
दूर हज़ारों कोस पह बीठे साथी का मन डोल गया
याद हैं तुम को सानझे दख ने बनगाले के काल के दन
रातीं दख वर भूख की रातीं दिन जी के जनजाल के दन
तब भी आग भरी थी मन में अब भी आग भरी है मन मीं
में तो यह सौ चों आग ही आग है इस जयोन मीं
अ ब सौ नहीं जाना चाहे रात कहीं तक जाे
अ न का हाथ कहीं तक जाेा पनी बात कहीं तक जाे
सानझी धरती सानझासोरज सानझे चाँद और तारे हीं
सानझी हैं सभी दख की सारी बातीं सानझे दर्द हमारे
गोली लाठी हीसह शासन धन दानों के लाख सहारे
वक़्त पड़ीं किस को पकारीं जनम जनम के भूख के मारे
बरस बरस बरसात का बादल नदयासी बन जाे गा
दरया भी असे लूग कहीं गे सागर भी कहलाे गा
जनम जनम के तरसे मन की खीती फर भी तरसे गी
कहने को यह रोप की बरखा पोरब पछम बरसे गी
जस के भग सकनदर हों गे बे मानगे भी पाे गा
आनचल को तरसाने वाला ख़ोद दामन फीलाे गा
ईंशा जी यह राम कहानी पीत पहली बोझे कोन
नाम लिये बन लाख पकारीं बोझ सहीली बोझे कोन
वह जस के मन के आनगन में यादों की दयवारीं हों
लाख कहीं हों रोप झरोके लाख अलबीली नारीं हों
इस को तो तरसाने वाला जनम जनम तरसाे गा
कब वह पयास बझाने वाला पयास बझाने आे गा






جب عمر کی نقدی ختم ہوئی

ا ب عمر کی نقدی ختم ہوئی
ا ب ہم کو ادھار کی حاجت ہے
ہے کوئی جو ساہو کار بنے
ہے کوئی جو دیون ہار بنے
کچھ سال ،مہینے، دن لوگو
پر سود بیاج کے بن لوگو
ہاںا پنی جاں کے خزانے سے
ہاں عمر کے توشہ خانے سے
کیا کوئی بھی ساہو کار نہیں
کیا کوئی بھی دیون ہار نہیں
جب ناما دھر کا آیا کیوں
سب نے سر کو جھکایا ہے
کچھ کام ہمیں نپٹانے ہیں
جنہیں جاننے والے جانے ہیں
کچھ پیار ولار کے دھندے ہیں
کچھ جگ کے دوسرے پھندے ہیں
ہم مانگتے نہیں ہزار برس
دس پانچ برس دو چار برس
ہاں ،سود بیاج بھی دے لیں گے
ہں اور خراج بھی دے لیں گے
آسان بنے، دشوار بنے
پر کوئی تو دیون ہار بنے
تم کون ہو تمہارا نام کیا ہے
کچھ ہم سے تم کو کام کیا ہے
کیوں اس مجمع میں آئی ہو
کچھ مانگتی ہو ؟ کچھ لاتی ہو
یہ کاروبار کی باتیں ہیں
یہ نقد ادھار کی باتیں ہیں
ہم بیٹھے ہیں کشکول لیے
سب عمر کی نقدی ختم کیے
گر شعر کے رشتے آئی ہو
تب سمجھو جلد جدائی ہو
اب گیت گیاسنگیت گیا
ہاں شعر کا موسم بیت گیا اب پت جھڑ آئی پات گریں
کچھ صبح گریں، کچھ را ت گریں
یہا پنے یار پرانے ہیں
اک عمر سے ہم کو جانے ہیں
ان سب کے پاس ہے مال بہت
ہاں عمر کے ماہ و سال بہت
ان سب کو ہم نے بلایا ہے
اور جھولی کو پھیلایا ہے
تم جاؤ ان سے بات کریں
ہم تم سے نا ملاقات کریں
کیا پانچ برس ؟
کیا عمرا پنی کے پانچ برس ؟
تم جا ن کی تھیلی لائی ہو ؟
کیا پاگل ہو ؟ سو دائی ہو ؟
جب عمر کا آخر آتا ہے
ہر دن صدیاں بن جاتا ہے
جینے کی ہوس ہی زالی ہے
ہے کون جو اس سے خالی ہے
کیا موت سے پہلے مرنا ہے
تم کو تو بہت کچھ کرنا ہے
پھر تم ہو ہماری کون بھلا
ہاں تم سے ہمارا رشتہ ہے
کیاسود بیاج کا لالچ ہے ؟
کسی اور خراج کا لالچ ہے ؟
تم سوہنی ہو ، من موہنی ہو ؛
تم جا کر پوری عمر جیو
یہ پانچ برس، یہ چار برس
چھن جائیں تو لگیں ہزار برس
سب دوست گئے سب یار گئے
تھے جتنے ساہو کار ، گئے
بس ایک یہ ناری بیٹھی ہے
یہ کون ہے ؟ کیا ہے ؟ کیسی ہے ؟
ہاں عمر ہمیں درکار بھی ہے ؟
ہاں جینے سے ہمیں پیار بھی ہے
جب مانگیں جیون کی گھڑیاں
گستاخ آنکھوں کت جا لڑیاں
ہم قرض تمہیں لوٹا دیں گے
کچھ اور بھی گھڑیاں لا دیں گے
جو ساعت و ماہ و سال نہیں
وہ گھڑیاں جن کو زوال نہیں
لو اپنے جی میں اتار لیا
لو ہم نے تم کو ادھار لیا

انشا جی کی کیا بات بنے گی

انشا جی کیا بات بنے گی ہم لوگوں سے دور ہوئے
ہم کس دل کا روگ بنے ، کس سینے کا ناسور ہوئے
بستی بستی آگ لگی تھی ، جلنے پر مجبور ہوئے
رندوں میں کچھ بات چلی تھی شیشے چکناچور ہوئے
لیکن تم کیوں بیٹھے بیٹھے آہ بھری رنجور ہوئے
اب تو ایک زمانہ گزرا تم سے کوئی قصور ہوئے
اے لوگو کیوں بھولی باتیں یاد کرو ، کیا یاد دلاؤ
قافلے والے دور گئے ، بجھنے دواگر بجھتا ہے الاؤ
ایک موج سے رک سکتا ہے طوفانی دریا کا بہاؤ
سمے سمے کا ایک را گ ہے ،سمے سمے کاا پنا بھاؤ
آس کی اُجڑی پھلواری میں یادوں کے غنچے نہ کھلاؤ
پچھلے پہر کے اندھیارے میں کافوری شنعیں نہ جلاؤ
انشا جی وہی صبح کی لالی ۔ انشا جی وہی شب کاسماں
تم ہی خیال کی جگر مگر میں بھٹک رہے ہو جہاں تہاں
وہی چمن وہی گل بوٹے ہیں وہی بہاریں وہی خزاں
ایک قدم کی بات ہے یوں تو رد پہلے خوابوں کا جہاں
لیکن دورا فق پر دیکھو لہراتا گھنگھور دھواں
بادل بادل امڈ رہا ہے سہج سہج پیچاں پیچاں
منزل دور دکھے تو راہی رہ میں بیٹھ رہے سستائے
ہم بھی تیس برس کے ماندے یونہی روپ نگر ہو آئے
روپ نگر کی راج کماری سپنوں میں آئے بہلائے
قدم قدم پر مدماتی مسکان بھرے پر ہاتھ نہ آئے
چندرما مہراج کی جیوتی تارے ہیں آپس میں چھپائے
ہم بھی گھوم رہے ہیں لے کر کاسہ انگ بھبھوت رمائے
جنگل جنگل گھوم رہے ہیں رمتے جوگی سیس نوائے
تم پر یوں کے راج دلارے ،تم اونچے تاروں کے کوی
ہم لوگوں کے پاس یہی اجڑا انبر ، اجڑی دھرتی
تو تم اڑن کھٹولے لے کر پہنچو تاروں کی نگری
ہم لوگوں کی روح کمر تک دھرتی کی دلدل میں پھنسی
تم پھولوں کی سیجیں ڈھونڈو اور ندیاں سنگیت بھری
ہم پت جھڑ کی اجڑی بیلیں ، زرد زرد الجھی الجھی
ہم وہ لوگ ہیں گنتے تھے تو کل تک جن کو پیاروں میں
حال ہماراسنتے تھے تو لوٹتے تھے انگاروں میں
آج بھی کتنے ناگ چھپے ہیں دشمن کے بمباروں میں
آتے ہیں نیپام اگلتے وحشی سبزہ زاروں میں
آہ سی بھر کے رہ جاتے ہو بیٹھ کے دنیاداروں میں
حال ہمارا چھپتا ہے جب خبروں میں اخباروں میں
اوروں کی تو باتیں چھوڑو ، اور تو جانے کیا کیا تھے
رستم سے کچھ اور دلاور بھیم سے بڑہ کر جودھا تھے
لیکن ہم بھی تند بھپرتی موجوں کا اک دھارا تھے
انیائے کے سوکھے جنگل کو جھلساتی جوالا تھے
نا ہم اتنے چپ چپ تھے تب، نا ہم اتنے تنہا تھے
اپنی ذات میں راجا تھے ہم اپنی ذات میں سینہ تھے
طوفانوں کا ریلا تھے ہم ، بلوانوں کی سینا تھے


پھر تمہارا خط آیا
شام حسرتوں کی شام
رات تھی جدائی کی
صبح صبح ہر کارہ
ڈاک سے ہوائی کی
نامۂ وفا لایا
پھر تمہارا خط آیا

پھر کبھی نہ آؤنگی
موجۂ صبا ہو تم
سب کو بھول جاؤنگی
سخت بے وفا ہو تم
دشمنوں نے فرمایا
دوستوں نے سمجھایا
پھر تمہارا خط آیا

ہم تو جان بیٹھے تھے
ہم تو مان بیٹھے تھے
تیری طلعتِ زیبا
تیرا دید کا وعدہ
تیری زلف کی خوشبو
دشتِ دور کے آہو
سب فریب سب مایا
پھر تمہارا خط آیا

ساتویں سمندر کے
ساحلوں سے کیوں تم نے
پھر مجھے صدا دی ہے
دعوت وفا دی ہے
تیرے عشق میں جانی
اور ہم نے کیا پایا
درد کی دوا پائی
دردِ لادوا پایا
کیوں تمہارا خط آیا

کیوں نام ہم اس کے بتلائیں

تم اس لڑکی کو دیکھتے ہو
تم اس لڑکی کو جانتے ہو
وہ اجلی گوری ؟ نہیں نہیں
وہ مست چکوری نہیں نہیں
وہ جس کا کرتا نیلا ہے؟
وہ جس کا آنچل پیلا ہے ؟
وہ جس کی آنکھ پہ چشمہ ہے
وہ جس کے ماتھے ٹیکا ہے
ان سب سے الگ ان سب سے پرے
وہ گھاس پہ نیچے بیلوں کے
کیا گول مٹول سا چہرہ ہے
جو ہر دم ہنستا رہتا ہے
کچھ چتان ہیں البیلے سے
کچھ اس کے نین نشیلے سے
اس وقت مگر سوچوں میں مگن
وہ سانولی صورت کی ناگن
کیا بے خبرانہ بیٹھی ہے
یہ گیت اسی کا در پن ہے
یہ گیت ہمارا جیون ہے
ہم اس ناگن کے گھائل تھے
ہم اس کے مسائل تھے
جب شعر ہماری سنتی تھی
خاموش دوپٹا چنتی تھی
جب وحشت اسے سستاتی تھی
کیا ہرنی سی بن جاتی تھی
یہ جتنے بستی والے تھے
اس چنچل کے متوالے تھے
اس گھر میں کتنے سالوں کی
تھی بیٹھک چاہنے والوں کی
گو پیار کی گنگا بہتی تھی
وہ نار ہی ہم سے کہتی تھی
یہ لوگ تو محض سہارے ہیں
انشا جی ہم تو تمہارے ہیں
اب اور کسی کی چاہت کا
کرتی ہے بہانا ۔۔۔ بیٹھی ہے
ہم نے بھی کہا دل نے بھی کہا
دیکھو یہ زمانہ ٹھیک نہیں
یوں پیار بڑھانا ٹھیک نہیں
نا دل مانا ، نا ہم مانے
انجام تو سب دنیا والے جانے
جو ہم سے ہماری وحشت کا
سنتی ہے فسانہ بیٹھی ہے
ہم جس کے لئے پردیس پھریں
جوگی کا بدل کر بھیس پھریں
چاہت کے نرالے گیت لکھیں
جی موہنے والے گیت لکھیں
اس شہر کے ایک گھروندے میں
اس بستی کے اک کونے میں.
کیا بے خبرانہ بیٹھی ہے
اس درد کو اب چپ چاپ سہو
انشا جی لہو تو اس سے کہو
جو چتون کی شکلوں میں لیے
آنکھوں میں لیے ،ہونٹوں میں لیے
خوشبو کا زمانہ بیٹھی ہے
لوگ آپ ہی آپ سمجھ جائیں
کیوں نام ہم اس کا بتلائیں
ہم جس کے لیے پردیس پھرے
چاہت کے نرالے گیت لکھے
جی موہنے والے گیت لکھے
جو سب کے لیے دامن میں بھرے
خوشیوں کا خزانہ بیٹھی ہے
جو خار بھی ہے اور خوشبو بھی
جو درد بھی ہے اور دار و بھی
لوگ آپ ہی آپ سمجھ جائیں
کیوں نام ہم اس کا بتلائیں
وہ کل بھی ملنے آئی تھی
وہ آج بھی ملنے آئی ہے
جو اپنی نہیں پرائی ہے





دور تمہارا دیس ہے مجھ سے



دور تمہارا دیس ہے مجھ سے اور تمہاری بولی ہے
پھر بھی تمہارے باغ ہیں لیکن من کی کھڑکی کھولی ہے
آؤ کہ پل بھر مل کے بیٹھیں بات سنیں اور بات کہیں
من کی بیتا ،تن کا دکھڑا ، دنیا کے حالات کہیں
اس دھرتی پر اس دھرتی کے بیٹوں کا کیا حال ہوا
رستے بستے ہنستے جگ میں جینا کیوں جنجال ہوا
کیوں دھرتی پہ ہم لوگوں کے خون کی نسدن ہولی ہے
سچ پوچھو تو یہ کہنے کو آج یہ کھڑکی کھولی ہے
بیلا دیوی آج ہزاروں گھاؤ تمہارے تن من ہیں
جانتا ہوں میں جان تمہاری بندھن میں کڑے بندھن میں
روگ تمہارا جانے کتنے سینوں میں بس گھول گیا
دور ہزاروں کوس پہ بیٹھے ساتھی کا من ڈول گیا
یاد ہیں تم کو سانجھے دکھ نے بنگالے کے کال کے دن
راتیں دکھ ور بھوک کی راتیں دن جی کے جنجال کے دن
تب بھی آگ بھری تھی من میں اب بھی آگ بھری ہے من میں
میں تو یہ سو چوں آگ ہی آگ ہے اس جیون میں
ا ب سو نہیں جانا چاہے رات کہیں تک جائے
ا ن کا ہاتھ کہیں تک جائےا پنی بات کہیں تک جائے
سانجھی دھرتی سانجھاسورج ،سانجھے چاند اور تارے ہیں
سانجھی ہیں سبھی دکھ کی ساری باتیں سانجھے درد ہمارے
گولی لاٹھی ہیسہ شاسن دھن دانوں کے لاکھ سہارے
وقت پڑیں کس کو پکاریں جنم جنم کے بھوک کے مارے
برس برس برسات کا بادل ندیاسی بن جائے گا
دریا بھی اسے لوگ کہیں گے ساگر بھی کہلائے گا
جنم جنم کے ترسے من کی کھیتی پھر بھی ترسے گی
کہنے کو یہ روپ کی برکھا پورب پچھم برسے گی
جس کے بھاگ سکندر ہوں گے بے مانگے بھی پائے گا
آنچل کو ترسانے والا خود دامن پھیلائے گا
انشا جی یہ رام کہانی پیت پہلی بوجھے کون
نام لیے بن لاکھ پکاریں بوجھ سہیلی بوجھے کون
وہ جس کے من کے آنگن میں یادوں کی دیواریں ہوں
لاکھ کہیں ہوں روپ جھروکے ،لاکھ البیلی ناریں ہوں
اس کو تو ترسانے والا جنم جنم ترسائے گا
کب وہ پیاس بجھانے والا پیاس بجھانے آئے گا

Monday, June 29, 2009

Urdu Poet Ibne Insha's Poetry in Hindi & Urdu

जब उमर की नक़दी खतम हवी

अ ब उमर की नक़दी खतम हवी
अ ब हम को अधार की हाजत हे
है कोई जो साहो कार बने
है कोई जो दयोन हार बने
कुछ साल महीने दिन लोगो
पर सोद बयाज के बन लोगो
हांा पनी जां के ख़ज़ाने से
हां उमर के तोशह ख़ाने से
कया कोई भी साहो कार नहीं
कया कोई भी दयोन हार नहीं
जब नामा धर का आया कयों
सब ने सर को झकएा हे
कुछ काम हमें नपटाने हीं
जनहीं जानने वाली जाने हीं
कुछ पयार वलार के धनदे हीं
कुछ जग के दोसरे फनदे हीं
हम मानगते नहीं हज़ार बरस
दस पाँच बरस दो चार बरस
हां सोद बयाज भी दे लीं गे
हं और ख़राज भी दे लीं गे
आसान बने दशवार बने
पर कोई तो दयोन हार बने
तुम कौन हो तमहारा नाम कया हे
कुछ हम से तुम को काम कया हे
कयों इस मजमा में आी हो
कुछ मानगती हो ؟ कुछ लाती हो
यह कारोबार की बातीं हीं
यह नक़द अधार की बातीं हीं
हम बीठे हैं कशकोल लये
सब उमर की नक़दी खतम कये
गर शार के रशते आी हो
तब समझो जिल्द जदाई हो
अब गीत गयासनगीत गया
हां शार का मोसम बीत गया अब पत झड़ आी पात गरीं
कुछ सुबह गरीं कुछ रा त गरीं
यहा पने यार पराने हीं
खाक उमर से हम को जाने हीं
उन सब के पास है माल बहत
हां उमर के माह व साल बहत
उन सब को हम ने बलएा हे
और झोली को फीलएा हे
तुम जा उन से बात करीं
हम तुम से ना मलाक़ात करीं
कया पाँच बरस ؟
कया अमरा पनी के पाँच बरस ؟
तुम जा न की थीली लाई हो ؟
कया पागल हो ؟ सौ दाई हो ؟
जब उमर का आख़र आता हे
हर दिन सदयां बन जाता हे
जीने की होस ही ज़ाली हे
है कौन जो इस से ख़ाली हे
कया मौत से पहले मरना हे
तुम को तो बहत कुछ करना हे
फर तुम हो हमारी कौन भला
हां तुम से हमारा रशतह हे
कयासोद बयाज का लालच है ؟
किसी और ख़राज का लालच है ؟
तुम सोहनी हो ، मन मोहनी हो ؛
तुम जा कर पोरी उमर जयो
यह पाँच बरस यह चार बरस
छन जाईं तो लगीं हज़ार बरस
सब दोस्त गे सब यार गे
थे जतने साहो कार ، गे
बस एक यह नारी बीठी हे
यह कौन है ؟ कया है ؟ कीसी है ؟
हां उमर हमें दरकार भी है ؟
हां जीने से हमें पयार भी हे
जब मानगीं जयोन की घड़यां
गसताख़ आँखों कत जा लड़यां
हम क़र्ज़ तमहीं लोटा दीं गे
कुछ और भी घड़यां ला दीं गे
जो साात व माह व साल नहीं
वह घड़यां जिन को ज़वाल नहीं
लो अपने जी में अतार लया
लो हम ने तुम को अधार लया

ईंशा जी की कया बात बने गी ईंशा

ईंशा जी कया बात बने गी हम लोगों से दूर हवे
हम किस दिल का रोग बने ، किस सीने का नासोर हवे
बसती बसती आग लगी थी ، जलने पर मजबोर हवे
रनदों में कुछ बात चली थी शीशे चकनाचोर हवे
लीकन तुम कयों बीठे बीठे आह भरी रनजोर हवे
अब तो एक ज़मानह गज़रा तुम से कोई क़सूर हवे
अे लोगो कयों भोली बातीं याद करो ، कया याद दला
क़ाफ़ले वाली दूर गे ، बझने दवागर बझता है अला
एक मोज से रुक सकता है तोफ़ानी दरया का बहा
समे समे का एक रा ग है समे समे काा पना भा
आस की उजड़ी फलवारी में यादों के ग़नचे न खला
पिछले पहर के अनधयारे में काफ़ोरी शनाईं न जला
ईंशा जी वही सुबह की लाली । ईंशा जी वही शब कासमां
तुम ही ख़याल की जिगर मगर में भटक रहे हो जहां तहां
वही चमन वही ग़ुल बोटे हैं वही बहारीं वही ख़ज़ां
एक क़दम की बात है यों तो रद पहले ख़वाबों का जहां
लीकन दोरा फ़क़ पर दीखो लहराता घनघोर धवां
बादल बादल अमड रहा है सहज सहज पीचां पीचां
मनज़ल दूर दखे तो राही रह में बीठ रहे ससताे
हम भी तीस बरस के मानदे योनही रोप नगर हो आे
रोप नगर की राज कमारी सपनों में आे बहलाे
क़दम क़दम पर मदमाती मसकान भरे पर हाथ न आे
चनदरमा महराज की जयोती तारे हैं आपस में छपाे
हम भी घोम रहे हैं ले कर कासह अनग भभोत रमाे
जनगल जनगल घोम रहे हैं रमते जोगी सीस नवाे
तुम पर यों के राज दलारे तम ओनचे तारों के कवी
हम लोगों के पास यही अजड़ा अनबर ، अजड़ी धरती
तो तुम अड़न खटोले ले कर पहनचो तारों की नगरी
हम लोगों की रोह कमर तक धरती की दलदल में फनसी
तुम फोलों की सीजीं ढोनडो और नदयां सनगीत भरी
हम पत झड़ की अजड़ी बीलीं ، ज़रद ज़रद अलझी अलझी
हम वह लूग हैं गनते थे तो कुल तक जिन को पयारों मीं
हाल हमारासनते थे तो लोटते थे अनगारों मीं
आज भी कतने नाग छपे हैं दुश्मन के बमबारों मीं
आते हैं नीपाम अगलते वहशी सबज़ह ज़ारों मीं
आह सी भर के रह जाते हो बीठ के दनयादारों मीं
हाल हमारा छपता है जब ख़बरों में अख़बारों मीं
ओरों की तो बातीं छोड़ो ، और तो जाने कया कया थे
रसतम से कुछ और दलओर भीम से बड़ह कर जोधा थे
लीकन हम भी तनद भपरती मोजों का खाक धारा थे
अनयाे के सोखे जनगल को झलसाती जवाला थे
ना हम अतने चप चप थे तब ना हम अतने तनहा थे
अपनी ज़ात में राजा थे हम अपनी ज़ात में सीनह थे
तोफ़ानों का रीला थे हम ، बलवानों की सीना थे



फर तमहारा खत आया
शाम हसरतों की शाम
रात थी जदाई की
सुबह सुबह हर कारह
डाक से हवाई की
नाम वफ़ा लएा
फर तमहारा खत आया

फर कभी न आनगी
मोज सबा हो तम
सब को भूल जानगी
सख्त बे वफ़ा हो तम
दशमनों ने फ़रमएा
दोसतों ने समझएा
फर तमहारा खत आया

हम तो जान बीठे थे
हम तो मान बीठे थे
तीरी तलात ज़ीबा
तीरा दीद का वादह
तीरी ज़लफ़ की ख़ोशबो
दशत दूर के आहो
सब फ़रीब सब मएा
फर तमहारा खत आया

सातवीं समन्दर के
साहलों से कयों तुम ने
फर मझे सदा दी हे
दावत वफ़ा दी हे
तीरे अशक़ में जानी
और हम ने कया पएा
दर्द की दवा पाई
दरद लादवा पएा
कयों तमहारा खत आया


कयों नाम हम इस के बतलाईं

तुम इस लड़की को दीखते हो
तुम इस लड़की को जानते हो
वह अजली गोरी ؟ नहीं नहीं
वह मसत चकोरी नहीं नहीं
वह जस का करता नीला हे
वह जस का आनचल पीला है ؟
वह जस की आनख पह चशमह हे
वह जस के माथे टीका हे
उन सब से अलग उन सब से परे
वह घास पह नीचे बीलों के
कया गोल मटोल सा चहरह हे
जो हर दम हनसता रहता हे
कुछ चतान हैं अलबीले से
कुछ इस के नीन नशीले से
इस वक़्त मगर सोचों में मगन
वह सानोली सूरत की नागन
कया बे ख़बरानह बीठी हे
यह गीत असी का डर पन हे
यह गीत हमारा जयोन हे
हम इस नागन के घाल थे
हम इस के मसाल थे
जब शार हमारी सनती थी
ख़ामोश दोपटा चनती थी
जब वहशत असे ससताती थी
कया हरनी सी बन जाती थी
यह जतने बसती वाली थे
इस चनचल के मतवाले थे
इस घर में कतने सालों की
थी बीठक चाहने वालों की
गो पयार की गनगा बहती थी
वह नार ही हम से कहती थी
यह लूग तो महज सहारे हीं
ईंशा जी हम तो तमहारे हीं
अब और किसी की चाहत का
करती है बहाना ।।। बीठी है
हम ने भी कहा दिल ने भी कहा
दीखो यह ज़मानह ठीक नहीं
यों पयार बड़ाना ठीक नहीं
ना दिल माना ، ना हम माने
अनजाम तो सब दनया वाली जाने
जो हम से हमारी वहशत का
सनती है फ़सानह बीठी हे
हम जस के ले परदीस फरीं
जोगी का बदल कर भीस फरीं
चाहत के नराले गीत लखीं
जी मोहने वाली गीत लखीं
इस शहर के एक घरोनदे मीं
इस बसती के खाक कोने मीं
कया बे ख़बरानह बीठी हे
इस दर्द को अब चप चाप सहो
ईंशा जी लहो तो इस से कहो
जो चतोन की शकलों में लये
आँखों में लिये होनटों में लये
ख़ोशबो का ज़मानह बीठी हे
लूग आप ही आप समझ जाईं
कयों नाम हम इस का बतलाईं
हम जस के लिये परदीस फरे
चाहत के नराले गीत लखे
जी मोहने वाली गीत लखे
जो सब के लिये दामन में भरे
ख़ोशयों का ख़ज़ानह बीठी हे
जो ख़ार भी है और ख़ोशबो भी
जो दर्द भी है और दार व भी
लूग आप ही आप समझ जाईं
कयों नाम हम इस का बतलाईं
वह कुल भी मलने आी थी
वह आज भी मलने आी हे
जो अपनी नहीं पराई हे

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